Saturday, March 26, 2011

ज़ुल्फ़

चेहरे पे गिरी ज़ुल्फ़ हटा क्यों नहीं देते,
तुम चाँद से मुखड़े को दिखा क्यों नहीं देते,

माना ये मैंने, शर्म से है, लब सिले हुये,
आँखों से दिल की बात जता क्यों नहीं देते,

रस्म-ओ-रिवाज़ सदियों से दुश्मन हैं प्यार के,
कोई और जहाँ मिल के बसा क्यों  नहीं  देते,

तुम हो सनम खुदा तुम्हें, इस दिल का वास्ता,
हर फ़ासले ऐ यार मिटा क्यों नहीं देते,


हल-ऐ-दिल " बेबस" को बता क्यों नहीं देते,

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