Sunday, April 10, 2011

पीड़ा.../

घर अंगना संभाल रे बाबा, अब तो हम ससुरार चले,
पीहर की देहरी के भीतर, सरसठ साल गुज़ार चले.............../
 
केसरिया जोड़े पे   सोहे   बूटी   सुर्ख़   हज़ार,  
मुझको तिरंगा दुपट्टा ओढ़ाया कितना किया है प्यार,
डोली मेरी फूलों से सजाये, कांधा दिए कहार चले.............../

अपने परायों ने मिल करके ब्याह रचाया मेरा,
कुछ लोगों ने मंत्र पढ़े, परिवार छुड़ाया मेरा,
शहनाई की गूँज में दब के , मन के सब उदगार चले.............../ 

"बेबस" अबला ठाड़ी अकेली, सूझी  राह न कोई
हाय ये कैसा दर्द दिया, ये सोच-सोच में रोई
टूट गये सब रिश्ते-नाते, तज के हम घर बार चले.............../