Friday, March 25, 2011

नक़ाब रुख़ से

नक़ाब रुख़ से हटाओ, तो बात बन जाये,
अगर नज़र से पिलाओ, तो बात बन जाये,

है लुत्फ़ पीने का अब्रा-ओ-सहाब में ऐ सनम,
ज़ुल्फ़ शानो पे गिराओ, तो बात बन जाये,

चांदनी रात है और मस्त हवा के झोके,
अगरचे पहलू में आओ, तो बात बन जाये,

तुम्हारी चेहरे से सरकी है ज़ुल्फ़ मुद्दत में,
तुम आज ईद मनाओ, तो बात बन जाये

हसीन रात है "बेबस" की अगर कोई  ग़ज़ल,
जो दिल के साज़ पे गाओ, तो बात बन जाये

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